कैसे बने विकसित भारत :--------

Prof.Mahipal Singh
निर्माण के अवसर @इंडिया 

मैंने अपने पिछले लेख  मे कोरोना महामारी से उपजे हालात और  लगभग सम्पूर्ण  विश्व का  वस्तुनिर्माण की दृस्टि से   चीन पर निर्भर होने का जिक्र किया था   भारत के लिए वर्तमान कालखंड वरदान साबित हो सकता है बसर्ते की यह महाबली  हाथी रूपी  भारत अपनी शक्ति को समझे और अपने अतीत के अच्छे और बुरे अनुभवों से सीखते हुए  सपूर्ण विश्व का वस्तु निर्माण और  ज्ञानशक्ति के बल पर नेत्रत्व   करे क्यो कि औद्योगीकरण ही   किसी भी आकार के देश की रीढ़ की हड्डी  होता  है  यह अत्यधिक कुशल पेशेवरों के लिए अर्ध कुशल और कुशल श्रमिकों  की  पूरी  संख्या  को अवशोषित कर सकता है  एक ऐसे देश के लिए जो अपने अविकसित टैग को हटाने  की इच्छा रखता है  सीमांत किसानों, या भूमिहीन कृषि श्रमिकों के रूप में काम करने वाले अत्यधिक लोगो के लिए  वरदान  साबित हो सकता है क्यों क़ि वे  आर्थिक रूप से मजबूत और अधिक उत्पादक बन सकते  है   और नाकारा या देश पर बोझ बनने की बजाए देश के सकल घरेलू उत्पाद का हिस्सा बन कर  देश  आर्थिक  उन्नति में सहयोग कर सकते है .  .


विश्व में उद्योगीकरण का इतिहास

मानव सभय्ताओ के विकास और उदय के जानकार पुरातत्व विज्ञानिको
का मानना है की सिंधु घाटी  सभय्ता  मतलब भारतीय सभय्ता और चीनी सभय्ता दोनों ही बाकि सभय्ताओ से
सर्वोत्तम और समृद  थी और हजारो सालो तक सिल्क रूट से यूरोप और पश्चिमी देशो तक सिल्क और मसालों का व्यापार होता रहा जब दुनिया के देश उस समय की मुलभुत वस्तुओ जैसे कपडा ,अनाज , मसाले और दवाओं आदि के लिए  लगभग  18वी शताब्दी. तक इन दोनों देशो पर ही निर्भर थे
परन्तु 18 वी  शताब्दी  मे कुछ अंग्रेज व्यापारियों ने इस कपड़ा बनाने की कला को इन देशो से सीख कर ब्रिटेन मे लकड़ी फ्रेम तथा जलचालित मशीनो से  कपड़ा बनाना शुरू किया  जिसको दुनिया में  पहली औद्योगीकरण की शुरुआत  माना जाता है और 1830  ई   से 1850  ई  के बीच ब्रिटेन  ने भाप चलित रेल इंजन की खोज कर रेल मार्गो से अपने देश और अपने अंडर भारत जैसे कई  उपनिवेशो को वहां की सम्पदा को लूटने के मकसद से रेल मार्गो से जोड़ा ऐसा माना जाता है    इन तकनीकों का आयात या चोरी करके अमेरिका ने भी रेल इंजन  और रेल मार्गो  का विस्तार कर लिया फलसवरूप इन  नए  शोधो का फायदा उठा कर  आज की दुनिया के विकसित देश जैसे जापान ,फ्रांस,इटली ,जर्मन  रूस आदि ने अपने आप को मजबूत औद्योगीक राष्ट्र    बना लिया .और जो सिलसिला आज तक जारी है

भारत में सम्भावना वाले  क्षेत्र 

सर्व प्रथम स्वदेसी  कच्चा माल आधारित उद्योग  क्षेत्र में  कुछ ऐसी वस्तुओ का जिक्र करूँगा  जिनको उच्च  तकनीक का इस्तेमाल करके विश्व उत्पाद बना कर  निर्यात किया जा सकता है जैसे टाइल एवं सेनेटरी वेयर जिसका कच्चा माल सिलिका पत्थर भारत के राज्य  राजस्थान मे भरपूर मात्रा में  उपलब्ध है अभी तक  भारत निर्यात में  तीसरे पायदान पर  रहते हुए
  विश्व खपत का लगभग  7 % निर्यात करता है जब की चीन 43 %  निर्यात के साथ विश्व में   पहले  स्थान पर  है  तो जाहिर है इस क्षेत्र मे काफी सम्भावना है 
वही मार्किट रिसर्च इंक नामक सर्वे कंपनी के अनुसार  वर्तमान समय में  लगभग 400 बिलियन डॉलर का  विश्व वुडेन फर्नीचर मार्किट है जो  एक अनुमान के मुताबिक  बढ़ कर 2025 तक 600 बिलियन डॉलर का  हो जाएगा  परन्तु आप को जान कर हैरानी होगी कि भारत टॉप 20 निर्यातक देशो मे भी नहीं है जब कि कच्चे
 माल के लिहाज से भारत मे प्लाईवुड ,लकड़ी ,और वुडक्राफ्ट कारीगर आदि सब कुछ उपलब्ध है  तो जाहिर है इस क्षेत्र मे भरपूर उम्मीदे  बरकरार है 
   गहन श्रमिक क्षमता वाला  लैदर एवं फुटवियर क्षेत्र  निर्यात  मे भारत नौवें पायदान पर है और   विश्व  खफत का मात्र 3.5  फीसदी माल ही भारत  द्वारा निर्यात किया जाता है जब की चीन 16.5 %  निर्यात कर  प्रथम स्थान पर बना हुआ है और मात्र 10 करोड़ की आबादी वाला छोटा सा   एशियाई   देश वियतनाम 12 %  निर्यात के साथ विश्व में  तीसरे स्थान पर है
मजे की बात तो यह है कि इस उद्योग के लिए कच्चा माल भी भारत मे ही उपलब्ध है इस  क्षेत्र मे भी व्यापक सम्भावना  मौजूद है
फैशन एवं लाइफस्टाइल  से जुड़ा कपड़ा और परिधान के  निर्यात क्षेत्र  मे भी भारत कोई बहुत अच्छा नहीं कर रहा है मात्र सालाना  37   बिलियन डॉलर निर्यात कर  वह पाचवे स्थान पर ही है जब कि हजारो साल पहले  विश्व प्रसिद सिल्क और कॉटन का उत्पादक तथा  कुशल कारीगरों वाला भारत  देश क्या कर रहा है समझ से परे है इन वस्तुओ  का  भी चीन सालाना 267 बिलियन  डॉलर का निर्यात कर प्रथम स्थान पर है ज कि आधुनिक दुनिया का सबसे महत्व पूर्ण उत्पाद रसायन निर्माण एवं निर्यात मे भी चीन कुल विश्व निर्यात का लगभग 14 % अकेला हिस्सेदार है जब कि भारत मात्र 3 .5 % के साथ विश्व मे 10 वे  पायदान पर है
इस क्षेत्र मे भारत केमिकल टेक्नोलॉजी एवं अनु संथान के बल पर नए नए अविष्कार कर के तथा देश मे उपलब्ध उत्पादों का पूर्ण इस्तेमाल कर अपनी घरेलु जरुरत कि पूर्ति  के  साथ साथ  निर्यात को बड़ा सकता है 

 अब मै  एक ऐसे उत्पाद का उल्लेख जरूर करना  चाहुँगा  जो लगभग हर इलेक्ट्रॉनिक वस्तु जैसे मोबाइल फ़ोन , कंप्यूटर ,उपग्रह प्रणाली , सेना के सुरक्षा उपकरण राडार ,टैंक आदि का  का मूल आधार है वो है एक छोटा सी वस्तु सेमि कंडक्टर डिवाइस "चिप "और इलेक्ट्रॉनिक सर्किट कॉम्पोनेन्ट  जो दूसरे विश्व युद्ध के बाद की दुनिया के कई देशो के लिए वरदान साबित हुए   जिन मे कुछ देश जैसे ताईवान, हांगकांग ,साउथ कोरिया,और चीन ने बहुत काम किया जिस कारण ये  देश   कुल विश्व निर्यात का लगभग 60 फीसदी हिस्सा उपलब्ध करवाते है  वही एक मीडिया रिपोर्ट  के मुताबिक   चीन 2025 तक इस  इलेक्ट्रॉनिक इंटीग्रेटेड सर्किट यानि चिप निर्माण  में  विश्व का  अकेला  सबसे बड़ा निर्माता होगा
 वही दूसरी और  विश्व आबादी का लगभग 20 % आबादी वाला भारत देश मात्र 0 .03 %  ही निर्यात करता है बल्कि इस के ठीक विपरीत चिप "और इलेक्ट्रॉनिक सर्किट कॉम्पोनेन्ट का अरबो डॉलर कीमत का आयात करता है जब की लाखो इंजीनियरो  की  फौज हर साल विभिन्न संस्थानों से निकल कर बेरोजगार सड़को पर धके खा रहे है अनुसन्धान के बल पर  इस क्षेत्र मे भी व्यापक संभावना मौजूद है
ताकि हम पहले चरण मे तो  आयात कम करे और दूसरे चरण मे निर्यात को बढ़ाए

चीन का औद्योगिक सफर : पिछड़े   कृषक  समाज से  औद्योगिक सुपर पावर  बनने तक 

 आप समझते है की चीन शुरू से ही कामयाब  औद्योगिक राष्ट्र था ऐसा नहीं है
बल्कि इस के पीछे 120 सालो का संघर्षशील  इतिहास  रहा है
1856  - 60  के दौरान   लड़े गए एंग्लो चीन युद्ध मे ब्रिटिश और फ्रांस  की जीत हुई फलस्वरूप पश्चिमी  ताकतों द्वारा चीन के आखरी राजवंश चिंग राजवंश पर त्रुटिपूर्ण संधि लाद कर घोर अपमानित किया गया
मात खाए  राजवंश ने 1861 में पहली चीनी औधोगिक क्रांति का सूत्रपात किया और नेवी और खस्ताहाल कृषि आधारितअर्थव्यवस्था  को मॉडर्न बनाने का बीड़ा उठाया परन्तु  50  साल मे हालत बद से बदतर हो गए और पूरा देश आंदोलित हो उठा  नतीजतन 1911 की चीनी क्रांति ने चीन के आखरी राज वंश को उखाड़ फैका  और नए चीनी गणराज्य का गठन हुआ  अब पश्चिम और खासकर अमरीकन नक्से कदम पर चलते हुए लोकतंत्र और सविधान तथा सत्ता शक्तिओ का वर्गीकरण  किया गया और उस दौर में  एक नारा बहुत  प्रसिद्ध हुआ की अब  केवल विज्ञानं और लोकतंत्र ही   चीन को बचा सकता है  परन्तु घोर भ्रष्टाचार के चलते अगले 40 सालो मे चीन  उन्नति करने की बजाए  दुनिया का सबसे गरीब देश बन गया व्यापक भूखमरी ,बेरोजगारी  से जनता त्राहिमाम थी   तब बहुत बड़ा राजनैतिक  उलटफेर हुआ और  1949 मे साम्यवादी किसान सेना ने चीन की सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया पर  इस बार सोवियत संघ की नक़ल करते हुए तीसरी बार नए सिरे से उद्योग को स्थापित करने की कोशिस की गई  परन्तु  सरकार की घोर साम्यवादी सोच के  कारण और  मजदूरो  की रोज रोज की हड़तालों ने फिर 35  साल बाद  देश को वही ला कर खड़ा कर दिया जहा वो 1860 मे था  और
सन 1978 में साम्यवादी सरकार का नेत्र्तव  डेंग ज़ियाओपिंग को दिया गया  उनकी कुशल योजना अनुसार    चीन ने चौथी बार औद्योगीकरण  का बिगुल फूंका .इस बार क्रमिकतावादी,नम्र , प्रयोगात्मक दृष्टिकोण और   आर्थिक सुधारो को तवज्जो देते हुए तथा  देश की श्रम शक्ति को केंद्र मान कर कुछ अति आवश्यक  मापदंड तय  किए गए  जैसे (1 ) देश में  हर हाल मे राजनैतिक  स्थायित्व रखना होगा
2 . सुधारो की शुरुआत निम्न सत्र मतलब कृषि क्षेत्र से की गई न की आर्थिक क्षेत्र से
3  पूरानी  तकनीके होने क़े बावजूद ग्रामीण औद्योगीकरण को बढ़ावा दिया गया
4  निर्माण क़े लिए विदेशी  मशीने खरीदने क़े लिए प्राकृतिक संसाधनों को बेचने की बजाए तैयार  माल को बदले में दिया गया
5 .औद्योगीक ढांचा खड़ा करने  क़े लिए सरकार ने पूर्ण सहयोग किया
6 .पूर्ण निजीकरण की बजाए दोहरे ट्रैक प्रणाली (सरकारी /निजी ) लागु किया गया
7 श्रम- पूंजी-गहन उत्पादन का आधार बना कर निचे से ऊपर तक तथा
विनिर्माण से वित्तीय पूंजीवाद तक औद्योगीक ढांचा  खड़ा किया गया
ऐसा माना जाता है की अपने  प्रयोग करने के  साथ साथ चीन के चौथे प्रयास ने ब्रिटिश औद्योगिक क्रांति के ऐतिहासिक अनुक्रम की नकल की बसर्ते राजनैतिक हालात बिलकुल जुदा होते हुए भी

क्या है औद्योगिकीकरण  का  चीनी मॉडल  

चीन के तेजी से विकास और दिनोदिन मजबूत होती  अर्थव्यवस्था  ने दुनिया के करोडो  लोगों को हैरान कर दिया था , जिसमें  तत्कालीन विश्व के  प्रसिद्व अर्थशास्त्री भी शामिल थे ।

ये दौर था 1978-1988  का चीन  में  शुरुआत हुई   प्रोटो-औद्योगिकरण की
इस चरण में चीन के विशाल ग्रामीण इलाकों और छोटे शहरों में लाखों ग्रामीण उद्यमों (किसानों के निजी स्वामित्व के बजाय सामूहिक रूप से स्वमित्व ) वाली निति का  अंकुरण किया गया और उम्मीद के मुताबिक
  इन उद्यमों ने आर्थिक सुधार के पहले 10 वर्षों के दौरान राष्ट्रीय आर्थिक विकास के इंजन के रूप में काम किया नतीजतन  ग्रामीण औद्योगिक उत्पाद की हिस्सेदारी राष्ट्रीय कुल उत्पाद का 14  % से बढ़ कर 46 % पहुंच गई और   इस अवधि में 800 मिलियन किसान आर्थिक सुधार के सबसे बड़े लाभार्थी बने । देखते ही देखते  देश की फसी हुई आर्थिक गाड़ी रफ़्तार पकड़ गई
अगला चरण 1988  से 1998  कालखंड  जिस को चीन पहली औद्योगिक क्रांति का नाम देता है इस दौर मे चीन ने बहुत बड़ी मात्रा में निर्माण के लिए विदेशी मशीनरी का आयात किया और ग्रामीण के साथ साथ शहरी क्षेत्रों में उद्योग स्थापित किये और खिलोने ,फर्नीचर ,कपडा आदि  बहुत बड़ी मात्रा में  सस्ते और हल्के  घरेलू उत्पाद बना कर विश्व बाजार मे धूम मचा दी कबीले गौर ग्रामीण औद्योगिक उत्पाद 28 % सालाना बढ़ने लगा और चीन ने हर हाथ को काम देकर बेरोजगारी को जड़ से मिटा दिया था  फिर दोगुनी गति के साथ आगे बढ़ते हुए अन्य क्षेत्रों जैसे    कोयला, स्टील, सीमेंट, रासायनिक फाइबर, मशीन टूल्स, राजमार्ग, पुल, सुरंगों, जहाजों के उपभोग और उत्पादन में एक बड़ा उछाल ला दिया और  मात्र 4 दशको मे एक अत्यंत गरीब देश अपने सक्षम व्यापारी सरकार के नेतृत्व में निरंतर बाजार निर्माण द्वारा  मजबूत अर्थव्यवस्था के बल पर दुनिया को अपनी ऊँगली पर नचाने लगा

दुनिया  का रुख अपनी तरफ मोड़ने और अवसरों का फायदा उठाने में 

 सरकार की भूमिका :-- भारत की पहली और सबसे विकट समस्या  एक बहुत बड़ी आबादी
(लगभग 60 %जनसंख्या ) का केवल कृषि पर निर्भर होना है परन्तु  कृषि आज एक घाटे का सौदा बन कर रह गई है कुछ कारणों से जैसे   कृत्रिम कृषि तकनीकों को ना अपनाना ,प्राकृतिक आपदा जैसे बाढ़,सूखा ,उचित दाम ना मिलना ,और कृषि उत्पादों का निर्यात ना होना आदि आदि  फलस्वरूप बहुत बड़ी संख्या मे देश के  लोग कृषि छोड़ कर पेट पालने के लिए शहरों की तरफ पलायन कर रहे है जिसका प्रत्यक्ष रूप आप ने कोरोना की त्रासदी के दौरान  भारत के हर शहर में देखा होगा
यह स्थिति लगभग वैसी ही है जैसे 1970 के दशक मे चीन की हुआ करती थी जब  समस्या में समानता है तो
समाधान  भी वैसी ही उद्योग  नीति से निकल सकता है तो कहने सीधा मतलब यह है की  सरकार एक ऐसी नई
औद्योगिक नीति लेकर आए जिसकी शुरुआत गांव से हो . सरकार अपनी हिस्सेदारी के साथ  पंचायत सत्र  पर क्लस्टर बना कर रूरल  इंडस्ट्री स्थापित करे  और खुद  गुणवत्ता पर कंट्रोल कर के मार्केटिंग की जिम्मेदारी ले   मतलब  पूर्ण निजीकरण की बजाए दोहरे ट्रैक प्रणाली (सरकारी /निजी ) लागु कर के उद्योग के लिए ढांचा भी सरकार ही  खड़ा करे तथा  तैयार  माल  सरकार सांझेदार के तौर  बड़े घरेलू उद्योग और विश्व सत्र पर  निर्यात करने की योजना बनाए ताकि देश के हर नागरिक को उसके  कौशल के अनुसार पगार मिले अब समय आ गया है की हम बदले परिवेश में गरीब विकासशील देश से विकसित देश बनाने  की और अग्रसर हो  नहीं तो रूरल इंडस्ट्री के नाम पर  लोग लोन लेते रहेंगे और कर्जदार बन कर आत्म हत्या करते रहेंगे
जब की चीन ने तो उस दौर में उत्पादन के  मशीने खरीदी थी पर आज भारत सक्षम  है मशीनो का निर्माण करने में तो करोडो डॉलर आयात पर खर्च  ना करे बल्कि  मशीन , कलपुर्जे  का निर्माण कर  घरलू मांग की
पूर्ति करते हुए निर्यात भी करे
बड़े उद्योग तथा  सुचना एवं सॉफ्टवेयर क्षेत्र के लिए भारत मे कई सैकड़ो की संख्या मे
विशेष उत्पाद निर्माण आधारित   सरकारी  और  निजी    स्पेशल इकनॉमिक जोन घोषित  किये  हुए है तो उधोगो के लिए जमीन की कोई समस्या नहीं है इस लिए आप चीन से पलायन करने वाली कम्पनीओ को भारत में  लाने की पुरजोर कोशिश करे
दूसरी बड़ी चुनौती स्किल मैनपावर की है उस का समाधान क्षेत्रिए भाषाओ मे कम पढ़े लिखे लोगो क़ो कम अवधि के मैन्युफैक्चरिंग आधारित कोर्स करवा कर किया जा सकता है परन्तु डिप्लोमा और डिग्री धारी लोगो क़ो रिफ्रेशर कोर्स करवाना होगा क्योकि  जैसा की आप सब  जानते है कि हमारे कॉलेजो में प्रैक्टिकल तो करवाए  ही नहीं जाते बस सीधे मार्कशीटो में मार्क्स  लगा दिए जाते है
तीसरी जरुरत राजनैतिक इच्छा शक्ति एवं  उस का राज्यो के साथ रणनीतिक  और आर्थिक सहयोग
चौथी  जरुरत स्मार्ट एवं प्रोफेशनल सोच वाले कार्यकारी अधिकारी जो अभी ना के बराबर है हमारे देश में  नहीं तो मुनाफे में चलने वाले नवरतन उद्योग जैसे भारत संचार निगम,एयर इंडिया,सेल इंडिया ,राष्ट्रीय इस्पात  घाटे में नहीं होते , इस समस्या से निजात पाने के लिए उनके वेतन  भत्ते और पदोनति उसी उद्योग के मुनाफे और घाटे के साथ जोड़ा जाये आदि आदि
 .
संभावित विश्व बाजार
 
विश्व में आज अफ्रीका  महादीप के देश अति गरीब और अविकासशील है  जहा प्राकृतिक संसाधन तो बहुतायत मे है एक भारतीय उद्योगपति अनिल धाभाई जो इथोपिया में मार्बल माइनिंग में व्यापार करते है के मुताबिक चीन ने अफ़्रीकी देशो में घरेलु सामान से लेकर माइनिंग ,बिल्डिंग  एयरपोर्ट  ब्रिज कंस्ट्रक्शन , टेलीकॉम क्षेत्र आदि लगभग सभी क्षेत्रों में सेंध लगा ली है पर अफ़्रीकी देश राष्ट्र पिता महात्मा गाँधी ने गोरो से मुक्ति पाने के लिए  रंगभेद विरोधी आंदोलन  में सहयोग करने के कारण भावात्मक लगाव रखते  है और भारत की तरह वहा  भी इंग्लिश भाषा अधिक उपयोग में लाई जाती है चीनी भाषा नहीं
 इस लिए वो भारत के साथ व्यापार में ज़्यादा अनुकूल  होते है बजाए चीन के .
अभी ताज़ा उदाहरण है एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक मात्र 2000 के लगभग वेंटीलेटर है पर पुरे महादीप की आबादी 1 .35  बिलियन है वो  देश लगभग सभी जीवन रक्षक दवा ,मास्क,किट , वेंटीलेटर की मांग कर रहे है  तो आप अंदाजा लगा सकते है की बाजार किस कदर आप के लिए  उपलब्ध है तो स्वामी विवेकानंद के कथन अनुसार उठो चलो और तब तक मत रुको जब तक मंजिल हासिल ना हो

जय हिन्द जय भारत

(लेखक  एक शिखाविद एवं  सामाजिक चिंतक है )

प्रो . महिपाल सिंह 

पूर्व अकादमिक सलाहकार  
अंसल यूनिवर्सिटी
गुडगाँव
हरियाणा
Mob 8130849101  

mahipaladhana@gmail.com

Comments

  1. It's a positive approach congratulation

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  2. Nice article. Undoubtedly the opportunity is huge and not to be missed. Sustained efforts from a united and focused India will certainly fulfill these aspirations.

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  3. Well written & explained touch every topic which needs to be redefined

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