*राजनैतिक पार्टीयो के सत्तासुख से उपर उठे लोग :* ये आंदोलन प्रसव पीड़ा से गुजर रहा है। किसानों का मजाक मत बनाइये । टिकैत के आंसुओं का भी मजाक मत बनाइये। किसानी खून की तासीर हुक्मरानों के समझ नही आएगी। गाजीपुर बॉर्डर पर बैठे किसान नेता के आंसू देखकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हूक उठना लाजमी है।
गुर्जर-जाट बहुल पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मूल चरित्र में सत्ता से समझौता करना नही है। ऐसा होता तो यहाँ 1857 की क्रांति न जन्मती ।
सरकारों की प्रयोग शाला का हिस्सा मत बनिये। दिल्ली में कुछ तत्वों की गलती एक आंदोलन की मौत नही होनी चाहिए। लोकतांत्रिक देश मे आवाज कुचलने का मौका सरकारों को मत दीजिये ।
जो सरकार अपनी पर आ जाये तो किसी को खांसने और पा#ने तक न दे , उसकी मर्जी के बिना कोई खालिस्तानी लालकिले में घुस जाएगा?
किसान न देश विरोधी है और न गद्दार । धारणाओं पर मत जाइये , ये धारणाएं सूचना प्रोद्योगिकी के युग मे बनाना मुश्किल नही है। सत्ता के लिए तुम्हारी गिनती उसके पास उपलब्ध "Data" के एक नम्बर से बढ़कर नही है जिसके खाने पीने की पसंद से लेकर हगने-मूतने तक के व्यवहार का आकलन बड़ी बड़ी कंपनियां करती है। हुक्मरान जानते है कि कौन सी बातें तुम्हे आसानी से बरगला सकती है , तुम्हारा माइंडसेट बदलने के लिए क्या पैंतरे अपनाये जाये।
चैनलों की भाषा देखकर आसानी से समझ जाओगे।
लेकिन हुक्मरान किसानों के आंसुओं का आंकलन नही कर पा रहे । उनको शायद ये नही पता कि गाजीपुर बॉर्डर पर बैठे किसान के आंसुओं को देखकर पूरे देश का किसान कैसे रियेक्ट करेगा , वे भले ही टिकैत को चुनाव में 8 हजार वोट न दे , पर बूढ़ी आंखों से निकले आंसू उसके ह्रदय को पिघलाने के लिए काफी है।
पार्टियों की मानसिक गुलामी से बाहर आइये। देश का निर्माण पार्टियां नही देश की जनता करती है। इनकी प्रयोगशाला का हिस्सा मत बनिये। रोटी आपको सरकारें नही देंगी , खेतों में हाड़ मांस गलाकर खुद ही उपजानी है।
प्रो महीपाल सिहं गुर्जर विश्लेषक एवं लेखक
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