नजरिया:--जरूरी है कि सरकार कृषि कानून बदल कर नये जनहित के कानून लाएं इस क्षेत्र मे निवेश बडाने के साथ साथ कृषि निर्यात को बडावा दें (भारत के कृषि क्षेत्र और निवेश पर एक नजर ): भारत में कृषि के ऊपर निर्भर जनसंख्या 1950- 51 में 70% थी, जबकि जीडीपी में कृषि का योगदान 45% था। 70 साल बाद खेती पर निर्भर लोगों की संख्या 50% है, जबकि जीडीपी में खेती का योगदान घटकर 16% ही बचा है। 1950- 51 में खेती में निवेश कुल निवेश का 18% था, जो घटकर 7.6% रह गया है। निवेश में कमी की वजह से भारत में प्रति हेक्टेयर गेहूं और धान की उत्पादकता विश्व रैंकिंग में क्रमशः 45वीं व 59वीं है। कृषि वस्तुओं के बाजार में सरकारी नियमन एवं निवेश की कमी के कारण कृषि वस्तुओं के लिए भारत में बाजार हमेशा ही दुश्मन रहा है, बाजार में कभी भी किसानों को उनकी फसलों का लाभकारी मूल्य प्राप्त नहीं हुआ है, कृषि उत्पादन बाजार समितियां छोटे किसानों के हितों के विपरीत ही सिद्ध हुई हैं, ऊपर से नए कृषि बिलों में छोटे बिचौलियों के बजाय बड़े बिचौलियों को ले आना किसानों की हालत को बद से बद्तर करेगा। भारत में आजादी के बाद खेती के लिए आवश्यक नीति एवं कानूनों का घोर अभाव रहा है। अमेरिका एवं यूरोप की जनसंख्या का 2% से भी कम खेती के कार्यो में लगा है, इसके बावजूद अमेरिका में 1933 में बने कृषि एडजस्टमेंट कानून के बाद से हर 4 साल बाद एवं यूरोप में साझा यूरोपियन बाजार के लिए 1962 से साझा कृषि नीति थोड़े-थोड़े अंतराल पर बनती रहती है, जिससे कि वहां के किसानों की जरूरतों का ढंग से ख्याल रखा जा सके। यही हाल कृषि सब्सिडी के क्षेत्र में है, भारत में 99.43 प्रतिशत किसान कम आय वाले साधन हीन गरीब किसान हैं, इसके बावजूद सबको मिलाकर मिलने वाली सब्सिडी मात्र 56 बिलियन डॉलर है, जबकि अमेरिका अपने किसानों को 131 बिलियन एवं यूरोप 93 बिलियन डॉलर की सब्सिडी देता है। अब जरूरी है कि भारत सरकार कृषि कानून बदल कर नये जनहित के कानून लाएं और इस क्षेत्र मे निवेश बडाने के साथ साथ कृषि निर्यात को बडावा दें
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